वो फ्लाई ओवर वाला घर
रोज की तरह मैं मोटर साइकिल से पढ़ाने जाता था,रास्ते में शहर का पहला जर-जर फ्लाई ओवर पड़ता है,उस दिन भी मैं उसी फ्लाई ओवर के बगल से गुजर रहा था मेंरी नजर उन चिडियों पर पडी
जो फ्लाई ओवर की दीवार में बने पाइप(तथाकथित घर) के छेदों से मोटर साइकिल की कर्कस आवाज के कारण बाहर निकल रही थी, अब तो मैं रोजाना यही देखता था,और सोचता था कि वह मोटर साइकिल की
आवाज से डर कर क्यों बाहर निकल आती हैं,फिर मैंने सोचा शायद यह इनका घर इनकी मेहनत से बनाया
नहीं है यह तो किसी और का बनाया है,ठीक उसी तरह जैसे एक परिवार किसी पुल के बड़े-बड़े पाईपो में उसके दोनों ओर फटे कपडे डाल कर अपनी शेष बची जिन्दगी गुजार रहा है उसको यही डर रहता है कि कब न यहाँ से जाना पड़े ,शायद यही स्थिति इन चिडियों की है कि कब उनसे यह घर कोई छीन ले। शायद उनका यह घर अपना ना होते हुए अपना ही है जो आराम देता है डर ही सही, फिर मैंने सोचा शायद इन चिडियों की गलती
है जो ऐसे घर में रहती हैं आखिर क्यो नहीं अपना घर किसी पेड़ में बना लेती जहां कि घर छोडने का डर न
हो ,इन चिडियों को क्या कहू निकम्मी,आलसी या स्वाभिमान की कमी न जाने क्या-क्या विचार मेरे अंतर्मन
मेंआते रहे। शायद उनकी इस सोच का असर उनके बच्चों पर भी हो गया था , हो भी जाता है यही सब सोच-विचार करते अपने गंतव्य स्कूल जा रहा था,अचानक मेरी नजर उन लोगो पर पडी जो कुल्हाडी से पेड़ काट
रहे थे और जैसे वह पेड़ सिर झुकाए,सिकुड़ा अपने को बलिदान कररहा हो,मेरे अंतर्मन में पुनः उन चिडियों के याद आई अरे पेड़ो पर तो वो घोंसला बनाती हैं यह घोंसला ही तो उनका अपना घर कहलाता है,अब वो अपना
घर कहा बनाये लगता है अब तो उन्हें इसी तरह दूसरों के बने घरो में डर-डर कर रहना पड़ेगा,क्या करे !
आखिर अपना भी यह घर है। आखिर चिड़ियां बेचारी क्या करती उन्हे भी तो जीने का हक़ है आखिर उनकी
कोई सरकार या नेता है नहीं जो वोट ले लेता और घर दे देता ,शायद नहीं। अच्छा रात में चिड़िया क्या
सोचती होगी ?
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